मंदिर

क्यों चाहिए मंदिर और तीर्थ
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जातिवाद, आरक्षण, मंदिर और धर्म की आढ़ में धन और सत्ता के लिए दौड़

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एक ग्रुप में आरक्षण और मंदिर को लेकर चर्चा हो रही थी मेरी। दलितों का कहना था कि मंदिरों में केवल ब्राह्मणों को ही पुजारी बनने का अधिकार है, किसी को और नहीं। हजारों वर्षों से ब्राह्मणों का आरक्षण है पुजारी पद पर और अब जब अंबेडकर साहब ने हमें भी आरक्षण का अधिकार दिया,…

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मंदिरों का औचित्य ही क्या है
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मंदिरों का औचित्य ही क्या है जब करना माफियाओं की गुलामी ही है ?

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आजकल समाज में एक विचित्र परिपाटी बन चुकी है, जिसमें लोग पूजा-पाठ, व्रत-उपवास और धार्मिक अनुष्ठान तो करते हैं, लेकिन वास्तविक जीवन में उनकी नैतिकता और आस्थाएँ सवालों के घेरे में हैं। इस लेख में हम उसी मानसिकता और जीवनशैली का विश्लेषण करेंगे जो मंदिरों, तीर्थ स्थलों, पूजा विधियों और धार्मिक अनुष्ठानों के प्रति लोगों…

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ईश्वर दो प्रकार के होते हैं
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ईश्वर दो प्रकार के होते हैं: सरकारी और गैर-सरकारी

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सरकारी ईश्वर वह है जो मंदिरों, मस्जिदों, गिरिजाघरों, गुरुद्वारों, दरगाहों, तीर्थों में विराजमान हैं और माफियाओं, सरकारों और धर्मों के ठेकेदारों की कृपा और दया पर आश्रित है। अपनी समस्याएँ, पीड़ा व्यक्त करने के लिए, मन्नतें मांगने के लिए उनके दरबार/दफ़तर/ऑफिस में हाज़िरी लगानी पड़ती है, रिश्वत/कमीशन चढ़ानी पड़ता है। सरकारी ईश्वर सरकारी आदेशानुसार कार्य…

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मंदिरों तीरथों में ईश्वर नहीं
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मंदिरों-तीर्थों में अब ईश्वर नहीं, वैश्य, शूद्र और ठग विराजमान रहते हैं

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मान्यता थी प्राचीन काल में कि ईश्वर सर्वशक्तिमान होता है। जो भी ईश्वर के मंदिर या तीर्थों में आता है, उसकी मनोकामनाएँ पूरी कर देता है। अंधन को आँख देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ।। अर्थात जो अंधों को आँखें देता है, कोढ़ियों को स्वस्थ करता है, बांझ…

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तीर्थों में प्रवेश शुल्क wpp1659681443650
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क्या तीर्थों, मंदिरों और आश्रमों में शुल्क लेना अनुचित है ?

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मेरा व्यक्तिगत मत है कि बिलकुल भी नहीं। क्योंकि कमर्शियल (व्यवसायिक) केन्द्रों के रखरखाव के लिए शुल्क लेना ही चाहिए। और अब चूंकि फ्री के सेवक मिलते नहीं, तो भक्ति और अध्यात्म का ढोंग करने वाले तीर्थयात्रियों द्वारा फैलाये गए कूड़ा कर्कट साफ करेगा कौन ? वैसे भी तीर्थ यात्रियों का ना धर्म से कोई…

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ये दुनिया एक बाज़ार है और...
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ये दुनिया एक बाज़ार है और समाज व सरकारें बिकाऊ

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अधिकांश तीर्थयात्री व्यक्तिगत स्वार्थों, कामनाओं की पूर्ति की आशा से जाते हैं और बाकी सब पर्यटन (सैर-सपाटे) के उद्देश्य से। मैंने आज तक एक भी तीर्थ यात्री ऐसा नहीं देखा जो आत्मिक, आध्यात्मिक ज्ञान और उत्थान हेतु तीर्थ स्थलों पर पहुँचा हो। देखा जाये तो धार्मिक और आध्यात्मिक जितनी भी यात्राएं हैं, सभी लोभ और स्वार्थ से भरी हुई यात्राएं होती हैं

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मंदिर में बैठे पण्डित, पुजारी, पुरोहित हराम का नहीं खा रहे

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राजनैतिक विरोध अपनी जगह, किसी सम्प्रदाय या व्यक्ति के उत्पातों और गुंडागर्दी का विरोध अपनी जगह। लेकिन जब आप विरोध में इतने गिर जाते हैं कि हर किसी को हरामखोर और खुद को मेहनती समझने लगते हैं, तब आप भी मेरे निशाने पर आ जाते हैं। जैसे कि किसी ने लिखा, “जैसे भिखारी को सलाह…

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