सरिता की जुबानी: एक क्रांतिकारी कहानी
हमेशा से मौन का यह अर्थ नहीं है कि कोई सत्य नहीं बोल सकता। जब सत्य को इतनी प्रमाणिकता से कहा जाता है तो पैशाचिक व्यवस्थाएं थर-थर कांप उठती हैं, क्योंकि मौन में भी एक शक्ति होती है। फिर क्या हुआ? हमें 23.10. 24 को सस्पेंड कर दिया गया। सच हमेशा कड़वा होता है, और…