न्याय

लोकतन्त्र या माफिया तन्त्र
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क्यों समाज आज तक पाखण्डवाद के विरुद्ध नहीं हो पाया ?

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सदियों से लोग धार्मिक ग्रन्थों को पढ़ते आ रहे हैं। सदियों से लोग एडुकेशन के नाम पर बड़ी-बड़ी डिग्रियाँ बटोरते आ रहे हैं। सदियों से लोग गुरुओं, सद्गुरुओं के नैतिक, सात्विक, धार्मिक उपदेश और प्रवचन सुनते आ रहे हैं। लेकिन क्या रूपान्तरण हुआ समाज, सरकार, परिवार और व्यक्तियों में ? यदि ध्यान दें तो समाज…

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व्यवसाय
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शिक्षा, चिकित्सा, न्याय, धर्म, आस्था, श्रद्धा और विश्वास का व्यवसाय

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क्यों करते हैं लोग अपने गुरु, अपने पंथ, अपने मजहब, अपने धार्मिक ग्रन्थों का प्रचार ? जिन्हें हम धर्मगुरु, धर्माचार्य कहते हैं, संन्यासी कहते हैं क्या वे वास्तव में संन्यासी होते हैं, या केवल मार्केटिंग एक्ज़्क्युटिव होते हैं ? ये जो सड़कों पर हरे रामा हरे कृष्णा या बाबा नाम केवलम या बाबाजी लाएँगे क्रान्ति,…

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रोना धोना बंद करो कर्ण
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प्रत्येक प्राणी का जीवन संघर्ष व चुनौतियों से निर्मित होता है

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कर्ण ने कृष्ण से पूछा मेरा जन्म होते ही मेरी माँ ने मुझे त्याग दिया..क्या अवैध संतान होना मेरा दोष था ? द्रोणाचार्य ने मुझे सिखाया नहीं क्योंकि मैं क्षत्रिय पुत्र नहीं था। परशुराम जी ने मुझे सिखाया तो सही परंतु श्राप दे दिया कि जिस वक्त मुझे उस विद्या की सर्वाधिक आवश्यकता होगी, मुझे…

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ये दुनिया एक बाज़ार है और...
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ये दुनिया एक बाज़ार है और समाज व सरकारें बिकाऊ

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अधिकांश तीर्थयात्री व्यक्तिगत स्वार्थों, कामनाओं की पूर्ति की आशा से जाते हैं और बाकी सब पर्यटन (सैर-सपाटे) के उद्देश्य से। मैंने आज तक एक भी तीर्थ यात्री ऐसा नहीं देखा जो आत्मिक, आध्यात्मिक ज्ञान और उत्थान हेतु तीर्थ स्थलों पर पहुँचा हो। देखा जाये तो धार्मिक और आध्यात्मिक जितनी भी यात्राएं हैं, सभी लोभ और स्वार्थ से भरी हुई यात्राएं होती हैं

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इंसान को हैवान बना देने वाले धार्मिक ग्रंथो से दूरी बना लीजिये.jpg
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इंसान को हैवान बना देने वाले धार्मिक ग्रंथो से दूरी बना लीजिये

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प्राचीन काल में कुछ लोग कपड़े से पहचान लेते थे। फिर नाम से पहचानने लगे। लेकिन अब तो न कपड़े से पहचान में आते हैं और ना ही नाम से। मैं तो अब नाम और कपड़ों के चक्कर में पड़ता ही नहीं। प्रोफ़ाइल चेक करता हूँ। जिसके प्रोफ़ाइल में अल्लाह-हू-अकबर या जय श्री राम के…

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geeta saar
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गीता सार: जो हुआ अच्छा हुआ और जो हो रहा है अच्छा ही हो रहा है !

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गीता सार: अकसर ऐसे महान विद्वानों से मेरी भेंट हो जाती है, जो बात-बात पर श्रीकृष्ण ने कहा था…श्री राम ने कहा था….. कहकर ही अपनी बात कहते हैं। मेरी समझ में यह नहीं आता कि राम और कृष्ण ने जो कुछ कहा अपने अनुभव व ज्ञान से कहा, लेकिन अब उनको दोहराने का लाभ…

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न्याय केवल व्यवसाय और तमाशा मात्र बनकर रह गया

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पहले मुझे लगता था कि सजा किसी को सही मार्ग पर लाने के लिए दी जाती है, लेकिन अब समझ में आया कि सजा सजा होती है और सुधरने या न सुधरने से उसका कोई लेना देना नहीं होता। केवल सजा की निर्धारित अवधि पूरी करनी होती है। उदाहरण के लिए संजयदत्त का केस ही…

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