ओशो

कमाकर खाओ
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बुरे समय में कोई साथ नहीं देता, इसलिए धन अर्जन आवश्यक है

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यह जीवन का कटु सत्य है कि बुरे समय में लोग आपका साथ छोड़ देते हैं। ऐसा प्रायः सभी के साथ होता है। बहुत कम लोग इस दुनिया में ऐसे मिलते हैं, जिन्हें कठिन समय में किसी का सहारा मिला हो और वे बिखरने से बच गए हों। यहां तक कि जिनके पास करोड़ों की…

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कभी किसी को वचन मत देना
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भूलकर भी किसी को वचन मत देना

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मुल्ला नसरुद्दीन मरता था तो उसने अपने बेटे को कहा कि अब मैं तुझे दो बातें समझा देता हूं। मरने के पहले ही तुझे कह जाता हूं इन्हें ध्यान में रखना। दो बातें हैं। एक आनेस्टी (ईमानदारी) और दूसरी है—विजडम (बुद्धिमानी)। तो, दुकान तू सम्हालेगा, काम तू सम्हालेगा। दुकान पर तखती लगी है आनेस्टी इज…

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सुख दुःख के साथी
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सुख और दुःख में साथ खड़े होने वालों का महत्व: ओशो का दृष्टिकोण

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जीवन में जब हम सुखी होते हैं, तो हमारे आसपास बहुत से लोग खड़े नजर आते हैं। यही स्थिति दुःख के समय भी होती है। अक्सर हम मान लेते हैं कि ये लोग, जो हमारे सुख और दुःख में साथ खड़े होते हैं, हमारे अपने हैं। लेकिन क्या वास्तव में ऐसा है? ओशो का कहना…

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जब कोई साथ ना हो तब भी कोई साथ होता है
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जब अपने साथ छोड़ देते हैं तब परायों से सहयोग मिलता है

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सोशल मीडिया के समझदार, कर्मवादी और मेहनती लोगों ने मुझे अपनी फ्रेंडलिस्ट से बाहर निकाल दिया है। कारण पर चिंतन किया तो यही समझ में आया कि मैं उनकी तरह समझदार, कर्मवादी और मेहनती नहीं हूँ। मैं सोशल मीडिया पर दान और आर्थिक सहयोग मांग लेता हूँ। और मेहनती, कर्मवादी लोगों की नजर में दान…

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लोमड़ी शिष्य नहीं हो सकती
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लोमड़ी कभी शिष्य नहीं हो सकती

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“हां, लोमड़ी कभी शिष्य नहीं हो सकती।”लोमड़ी बहुत चालाक है, गणनात्मक है, तर्कशील है। लोमड़ी का मन हमेशा अधिक जानकारी, अधिक ज्ञान की खोज में रहता है – लेकिन अधिक समझ की नहीं। लोमड़ी का मन जो भी कहीं से मिल सके, उसे बटोरने में लगा रहता है ताकि वह और अधिक ज्ञानी बन सके।…

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अकेला ही चलना पड़ता है
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अकेलेपन से जागृति तक: एक आत्मिक यात्रा

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जागरूकता की पहली किरण पहले मैं संगठन, संस्था, समाज को बहुत महत्व देता था, क्योंकि मैं जागृत नहीं था। लेकिन जिस दिन जागा, उस दिन से फिर कभी किसी संस्था, संगठन, समाज से जुड़ने की इच्छा नहीं हुई। किसी विवशता में यदि जुड़ा भी, तो उस भीड़ में एक एलियन, एक अजनबी की तरह ही…

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dhyan
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ध्यान के दौरान आने वाली बाधाओं से कैसे निबटा जाए ?

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प्रश्न:–ध्यान के दौरान खुजली व दर्द जैसी बाधा डालने वाली भावनाओं से कैसे निबटा जाए ? ध्यान में, ज्यादातर शारीरिक दर्द बाधा डालते हैं। क्या आप बताएंगे कि जब दर्द हो रहा है तब उस पर ध्यान कैसे किया जाए? ओशो:– यह वही है जिसकी मैं बात कर रहा था। यदि तुम दर्द महसूस करते…

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paramparik sannyas aur navsannyas
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पारंपरिक संन्यास और नवसंन्यास में अंतर क्यों है ?

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संन्यास, एक ऐसा शब्द है जिसे हम सभी ने सुना है, लेकिन क्या हम सच में इसके अर्थ को समझ पाए हैं? क्या संन्यास का केवल एक ही रूप होता है, या फिर इसे समझने के कई दृष्टिकोण हो सकते हैं? पारंपरिक संन्यास और नवसंन्यास में अंतर समझने के लिए हमें पहले संन्यास की सही…

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chakravarti samrat aur sumeru parvat
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चक्रवर्ती सम्राट और सुमेरु पर्वत

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जैन शास्त्रों में एक बड़ी प्यारी कथा है। तुमने चक्रवर्ती शब्द सुना होगा, लेकिन ठीक-ठीक शायद उसका अर्थबोध तुम्हें न हो। चक्रवर्ती का अर्थ होता है: वह व्यक्ति जो छहों महाद्वीपों का सम्राट हो, सारी पृथ्वी का। जिसका राज्य कहीं भी समाप्त न होता हो, जिसके राज्य की कोई सीमा न हो, जिसका चक्र पृथ्वी…

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ek sannyasi ke gun
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प्रिय ओशो, एक संन्यासी के गुण क्या हैं ?

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संन्यासी को परिभाषित करना बहुत कठिन है, और यदि आप मेरे संन्यासियों को परिभाषित करने जा रहे हैं तो यह और भी कठिन है। संन्यास मूलतः सभी संरचनाओं के प्रति विद्रोह है, इसलिए इसे परिभाषित करना कठिन है। संन्यास जीवन को बिना किसी संरचना के जीने का एक तरीका है। संन्यास का अर्थ है एक…

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jaraa si shiksha
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दुनिया जितनी शिक्षित होती जाती है उतनी ही बुरी क्यों हो जाती है ?

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बुद्धिमानी का उपयोग लोग जीवन के सत्य को पाने के लिये नहीं, बुद्धिमानी का उपयोग लोग दूसरे का शोषण करने के लिये; बुद्धिमानी का उपयोग स्वयं के अनुभव को पाने के लिये नहीं, सृजनात्मक नहीं, विध्वंसात्मक करते हैं। इसलिये जैसे-जैसे बुद्धि बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे बेईमानी बढ़ती जाती है। विचारक हमेशा से परेशान रहे हैं…

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क्यों दुर्लभ होते हैं बुद्ध, ओशो, सुकरात जैसे जागृत और चैतन्य लोग ?

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सच तो यह है कि हम सभी के भीतर बुद्ध, ओशो, सुकरात जैसे जागृत और चैतन्य होने का गुण विद्यमान होता है। लेकिन अधिकांश लोग सम्झौता कर लेते हैं और मार देते हैं बुद्ध, ओशो और सुकरात को। और जो सम्झौता नहीं करते, उनमें से अधिकांश को माफियाओं और लुटेरों के गुलाम समाज, सरकारें और…

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