स्वतन्त्रता के विरुद्ध और परतंत्रता के समर्थन में होता है समाज
स्वतन्त्रता और परतंत्रता की परिभाषाएँ भी स्पष्ट नहीं हैं यदि समाज पर नजर डालें। क्योंकि समाज ने परतंत्रता को भी स्वतन्त्रता बिलकुल वैसे ही स्वीकार लिया है, जैसे साम्प्रदायिक द्वेष और घृणा पर आधारित मानसिकता, रीतिरिवाज, मान्यताओं, परम्पराओं, कर्मकाण्डों को धर्म और साम्प्रदायिक द्वेष और आतंक परोसकर शासन करने वालों को धार्मिक मान लिया गया।…