राजनीति

guru, bhakti aur samaj kii vidambana
|

गुरु, भक्ति और समाज की विडंबना

इस संसार में किसी के जन्म-मरण से तब तक कोई फर्क नहीं पड़ता, जब तक कि उसके नाम पर व्यापार खड़ा न किया जा सके, कमाई का साधन न बनाया जा सके। यही कारण है कि वे गुरु, जिनके नाम पर अरबों-खरबों की संपत्ति खड़ी होती है, जिनके आश्रमों में राजनीति चमकती है, जिनकी शिक्षाओं…

राजनीति और मानवता
| | |

राजनीति और मानवता: एक विरोधाभासी संबंध

राजनीति और मानवता, ये दोनों सदैव विपरीत ध्रुव प्रतीत होते रहे हैं। जबकि आदर्श स्थिति यह होनी चाहिए थी कि राजनीति में वही व्यक्ति सक्रिय हों, जो मानवीय गुणों से परिपूर्ण और मानवता के प्रति समर्पित हों। परंतु विडंबना यह है कि राजनीति में सफलता उन्हीं को मिलती है, जिनमें मानवता का ह्रास हो चुका…

सोशल मीडिया की विविध दुनियाएँ
| |

मेरी दुनिया: एक अलग दृष्टिकोण

सोशल मीडिया की विविध दुनियाएँ सोशल मीडिया आज की दुनिया का एक ऐसा मंच बन चुका है जहाँ हर व्यक्ति अपनी-अपनी रुचियों और सोच के अनुरूप एक अलग दुनिया बसा चुका है। साम्प्रदायिक लोगों की अपनी दुनिया है, जहाँ केवल हिन्दू-मुस्लिम विवादों पर चर्चा होती है। उनके मित्र, परिवार और समाज सब इसी खेल में…

IMG 20230807 WA0008
| |

कहीं कोई सांपनाथ तो कहीं कोई नागनाथ….

चुनावी सीजन के फूल तो राजनीति में, गेरुवा के गुलशन गुलशन से ही उनके भेड़ों में खिलते हैं और राजनीति में दमकते हैं। और उन पूंजीवाद के गुलशन-गुलशन के फूल तो उन राजनीतिज्ञ के चमन-चमन से खिल कर, पुरोहितवाद में जा बरसते हैं और उन भेड़ों में जा दमकते हैं और फिर राजनीतिज्ञ चांद सितारों में जा चमकते हैं..

लोकतन्त्र या माफिया तन्त्र
| | |

क्यों समाज आज तक पाखण्डवाद के विरुद्ध नहीं हो पाया ?

सदियों से लोग धार्मिक ग्रन्थों को पढ़ते आ रहे हैं। सदियों से लोग एडुकेशन के नाम पर बड़ी-बड़ी डिग्रियाँ बटोरते आ रहे हैं। सदियों से लोग गुरुओं, सद्गुरुओं के नैतिक, सात्विक, धार्मिक उपदेश और प्रवचन सुनते आ रहे हैं। लेकिन क्या रूपान्तरण हुआ समाज, सरकार, परिवार और व्यक्तियों में ? यदि ध्यान दें तो समाज…

होइहे वही जो शैतान रचि रखा
|

आइए, सकारात्मक हो जाएँ – क्योंकि होइहे वही जो माफिया रची राखा !

आइये सकारात्मक हो जाएँ क्योंकि होइहे वही जो राम रची रखा ! दुनिया के सभी गुरुओं ने यही सिखाया कि केवल अपना भला सोचो और मैं सुखी तो जग सुखी के सिद्धान्त पर जियो। सकारात्मक रहो और लुटने दो खेत, जंगल, नदी, तालाब। होने दो बर्बाद देश की युवा और भावी पीढ़ियों को। बन जाने…

सकारात्मक इंसान और गिद्ध
| |

संभवतः सकारात्मक इंसान और गिद्धों में कोई अंतर नहीं होता

जब मुग़ल आए भारत को लूटने, तब सकारात्मक लोग ध्यान, भजन-कीर्तन कर रहे थे, थाली-ताली बजा रहे थे और नकारात्मक लोग लुटेरों से युद्ध कर रहे थे। जब अंग्रेज़ आए, जब पुर्तगाली आए, जब फ्रांसीसी आए भारत पर कब्जा करने, तब भी सकारात्मक लोग थाली-ताली बजाकर नाच रहे थे और नकारात्मक लोग युद्ध कर रहे…

Politics Rajnaitik partiyon ko bhi dharm kyon nahi ghoshit kar dete

राजनैतिक पार्टियों को भी धर्म घोषित क्यों नहीं कर देते ?

कहते हैं डिग्रियाँ बटोरने के लिए स्कूल जाना जरूरी है। फिर स्कूल सर्टिफिकेट जारी करता है कि यह बालक अब डिग्रियाँ बटोरने के योग्य हो गया है इसलिए इसे कॉलेज में दाखिला दिया जा सकता सकता है। फिर बच्चा कॉलेज जाता है और डिग्रियाँ बटोरने का हुनर सीखता है। विक्षिप्त लोगों को विकलांग कहना पाप…

gandhi महात्मा गाँधी
|

गाँधी ने भारत की सत्ता दूसरों के हाथों में देकर बहुत नुक्सान पहुँचाया

हम ऐसे अभागे लोग हैं कि हम दुर्भाग्य की निरंतर प्रशंसा करते हैं। भारत में अगर थोड़ी से भी समझ होती तो भारत भर में उपवास किये जाने चाहिए थे, अनशन किये जाने चाहिए थे, गाँधी के विरुद्ध और सारे भारत पर जोर डालना चाहिए थे कि एक अच्छे आदमी के हाथ में ताकत जा…

monk संन्यासी राजनीति
|

संन्यासी हो ही नहीं सकते, क्योंकि आप राजनीति की बातें करते हैं !

अभी दो-तीन दिन पहले किसी सज्जन धार्मिक व्यक्ति ने मुझसे कहा की आप पाखंडी हो। सन्यासी हो ही नहीं सकते, क्योंकि आप राजनीति की बातें करते हैं, क्योंकि आप दुनियादारी की बातें करते हैं, क्योंकि आपका ध्यान ईश्वर में नहीं, देश और समाज में लगा है। तो आप सन्यासी कैसे हो गए, आपका ध्यान तो…