साधु जीवन

अकेला ही चलना पड़ता है
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अकेलेपन से जागृति तक: एक आत्मिक यात्रा

जागरूकता की पहली किरण पहले मैं संगठन, संस्था, समाज को बहुत महत्व देता था, क्योंकि मैं जागृत नहीं था। लेकिन जिस दिन जागा, उस दिन से फिर कभी किसी संस्था, संगठन, समाज से जुड़ने की इच्छा नहीं हुई। किसी विवशता में यदि जुड़ा भी, तो उस भीड़ में एक एलियन, एक अजनबी की तरह ही…

साधना और स्व की पहचान
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साधना और स्व की पहचान

कहते हैं, यह कई हज़ार वर्ष पुरानी बात है। मैं एक घने जंगल में साधना कर रहा था। न किसी से मिलना, न बोलना, न खाने-पीने की चिंता और न ही कमाने की। बस एक ही जगह स्थिर होकर अपनी साधना में लीन था। साधना क्या थी? फेसबुक पर अपने विचार लिखना। वर्षों इसी तरह…