संन्यास

meri maulik avaaz meri lekhi
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मेरी वेदना मेरी आवाज़ है मेरी लेखनी

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माना कि मेरे लेख मेन स्ट्रीम मीडिया की चकाचौंध से दूर रहते हैं। माना कि इन शब्दों से किसी के मन में कोई उथल-पुथल नहीं मचती, न कोई क्रांति जन्म लेती है, न ही कोई बड़ा बदलाव आता है। फिर भी, मैं लिखता हूं। क्यों? क्योंकि लिखना मेरा काम नहीं, मेरी सांस है। जैसे जंगल…

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sannyas swabhiman aur sahyog
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संन्यास, स्वाभिमान और सहयोग: एक गहन दृष्टिकोण

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कई लोग कहते हैं, “जब तुमने संन्यास ले लिया, समाज का त्याग कर दिया, तो फिर झोंपड़ी की आवश्यकता क्यों? आर्थिक सहयोग क्यों चाहिए? यदि जंगल में ही रहना है, तो जंगलियों की तरह रहो। क्यों मांगते हो सहायता उस समाज से जो स्वयं माफियाओं का गुलाम है?” इसी मानसिकता ने हमारे समाज को भीतर…

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सम्मान की चाह या स्वतन्त्रता का चुनाव
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सम्मान की चाह या स्वतन्त्रता का चुनाव ?

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महत्वपूर्ण यह नहीं कि कौन आपको चाहता है, बल्कि यह है कि कौन आपको महत्व देता है और आपका सम्मान करता है। अक्सर, जब हम दूसरों की नजरों में विशेष बनने की कोशिश करते हैं, तो अपनी मौलिकता खो बैठते हैं। हमें वैसा बनने की मजबूरी होती है, जैसा दूसरा चाहता है। इस प्रक्रिया में…

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अकेला ही चलना पड़ता है
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अकेलेपन से जागृति तक: एक आत्मिक यात्रा

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जागरूकता की पहली किरण पहले मैं संगठन, संस्था, समाज को बहुत महत्व देता था, क्योंकि मैं जागृत नहीं था। लेकिन जिस दिन जागा, उस दिन से फिर कभी किसी संस्था, संगठन, समाज से जुड़ने की इच्छा नहीं हुई। किसी विवशता में यदि जुड़ा भी, तो उस भीड़ में एक एलियन, एक अजनबी की तरह ही…

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paramparik sannyas aur navsannyas
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पारंपरिक संन्यास और नवसंन्यास में अंतर क्यों है ?

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संन्यास, एक ऐसा शब्द है जिसे हम सभी ने सुना है, लेकिन क्या हम सच में इसके अर्थ को समझ पाए हैं? क्या संन्यास का केवल एक ही रूप होता है, या फिर इसे समझने के कई दृष्टिकोण हो सकते हैं? पारंपरिक संन्यास और नवसंन्यास में अंतर समझने के लिए हमें पहले संन्यास की सही…

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thopi hui manyataon se mukt sannyasi
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संन्यास: सामाजिक मान्यताओं और परम्पराओं का बंधन है या स्वतंत्रता ?

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क्या आपने कभी सोचा है कि जीवन में हम कितनी चीजों के लिए दूसरों पर निर्भर रहते हैं? कितनी बार हमारे अपने ही शुभचिंतक और हितैषी हमारे निर्णयों के कारण दूर हो जाते हैं? पिछले साल 3 नवंबर को मैंने भी ऐसा एक कदम उठाया – आश्रम छोड़कर गाँव के एक साधारण घर में रहने…

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ek sannyasi ke gun
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प्रिय ओशो, एक संन्यासी के गुण क्या हैं ?

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संन्यासी को परिभाषित करना बहुत कठिन है, और यदि आप मेरे संन्यासियों को परिभाषित करने जा रहे हैं तो यह और भी कठिन है। संन्यास मूलतः सभी संरचनाओं के प्रति विद्रोह है, इसलिए इसे परिभाषित करना कठिन है। संन्यास जीवन को बिना किसी संरचना के जीने का एक तरीका है। संन्यास का अर्थ है एक…

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संन्यास से बढ़कर कोई आत्महत्या नहीं
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तुम आत्महत्या क्यों करना चाहते हो ?

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एक शिष्य ने ओशो से कहा की वह जिंदगी से तंग आ कर आत्महत्या करना चाहता है ओशो: तुम आत्महत्या क्यों करना चाहते हो ? शायद तुम जैसा चाहते थे, लाइफ वैसी नहीं चल रही है? लेकिन तुम ज़िन्दगी पर अपना तरीका, अपनी इच्छा थोपने वाले होते कौन हो? हो सकता है कि तुम्हारी इच्छाएं…

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kahan hai samaj
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समाज सेवा जैसी मूर्खतापूर्ण कार्य मैं नहीं करता

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संन्यास लेने के बाद जो सबसे बड़ा बदलाव मेरे भीतर हुआ, वह यह कि अब मुझे समाज मे रुचि नहीं। अब मुझे किसी के घर जाने से, किसी उत्सव, किसी सभा, किसी सत्संग में जाने पर आनन्द की अनुभूति नहीं होती। सच तो यह है कि अब मुझे किसी से मिलकर, किसी से बात करने…

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भविष्य का संन्यास कृषि प्रधान होगा
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नव संन्यास भविष्य के अत्याधुनिक मौलिक संन्यास की आधारशिला

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एक है परंपरागत संन्यास जिसमें व्यक्ति किसी आश्रम, किसी संस्था, किसी पंथ की मान्यताओं, परम्पराओं को ढोने के लिए बाध्य हो जाता है और मार्केटिंग एजेंट बनकर रह जाता है। और दूसरा है नव संन्यास जिसकी नींव रखी श्री रजनीश (ओशो) ने। पारंपरिक संन्यास विश्व के लगभग सभी देशों से लुप्त हो चुका है और…

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क्यों पूजते हैं गुरुओं को और क्यों पढ़ते हैं धार्मिक ग्रंथ
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क्यों पूजते हैं गुरुओं को और क्यों पढ़ते हैं धार्मिक ग्रंथ ?

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प्रश्न उठता है कई बार मेरे मन में कि क्यों पूजते हैं गुरुओं को और क्यों पढ़ते हैं धार्मिक ग्रन्थ ? कहते हैं लोग कि गुरुओं ने हमें मार्ग दिखाया, जीने की कला सिखाई, ज्ञान दिया, सही और गलत में अंतर करना सिखाया….. इसीलिए उन्हें पूजा जाता है। क्या यही कारण है पूजने का ?…

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हौज वाला ज्ञान जिससे पंडित पैदा होते हैं

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*मैंने कहा कि ज्ञान से मुक्त हो जाना जरूरी है। यह तो बड़ी अजीब बात है!* एक छोटी सी कहानी इस प्रश्न के उत्तर में कहूंगा। बंगाल में एक फकीर हुआ। छोटा उसका एक आश्रम था। उस आश्रम में नये-नये लोग आते, ठहरते, ज्ञान लेते। एक नया संन्यासी भी आया, पंद्रह दिन तक वहां रुका,…

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