संसार

ना सुधरा समाज कभी ना सुधरा संसार
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ना समाज सुधरा कभी और ना सुधरा संसार

चिंतन-मनन करने के लिए भक्ति मुक्त मस्तिष्क चाहिए होता है। लेकिन समाज और सरकारें कभी नहीं चाहतीं कि व्यक्ति भक्ति से मुक्त होकर स्वतंत्र चिंतन-मनन करे। क्योंकि जो चिंतन-मनन करने लगता है, वह माफियाओं और लुटेरों के लिए समस्या खड़ी कर सकता है दूसरों को भी अपना मस्तिष्क प्रयोग करने के लिए प्रेरित करके। इसीलिए…

परिवर्तन संसार का नियम है
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परिवर्तन ही संसार का शाश्वत सत्य नियम है

प्रकृति नवीनता पसंद करती है और धार्मिक लोग पुरातन चीजें। प्रकृति ने कुछ निर्माण किया और फिर यदि उसे लगा कि उससे श्रेष्ठ कुछ और हो सकता है, तो पुराना मिटा दिया और नया गढ़ दिया। फिर चाहे डायनासौर जैसे भारी भरकम जीवों को ही मिटाकर मानवों का निर्माण किया हो या मंगल गृह को…