ना समाज सुधरा कभी और ना सुधरा संसार
चिंतन-मनन करने के लिए भक्ति मुक्त मस्तिष्क चाहिए होता है। लेकिन समाज और सरकारें कभी नहीं चाहतीं कि व्यक्ति भक्ति से मुक्त होकर स्वतंत्र चिंतन-मनन करे। क्योंकि जो चिंतन-मनन करने लगता है, वह माफियाओं और लुटेरों के लिए समस्या खड़ी कर सकता है दूसरों को भी अपना मस्तिष्क प्रयोग करने के लिए प्रेरित करके। इसीलिए…