सिद्धान्त

धारणाएँ टूटती हैं और नयी बनती हैं
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धारणाएँ अस्थाई होती हैं और पुरानी टूटती है, नई बनती हैं

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प्राचीन काल में धारणा थी कि सूर्य पृथ्वी के चक्कर लगाता है। ज्योतिष शास्त्र आज भी इसी सिद्धान्त पर भविष्य बताता है। लेकिन फिर एक दिन किसी सरफिरे ने धारणा बदलने का प्रयास किया, जिसके कारण सौरमण्डल के रक्षकों ने उसे मौत की सजा सुना दी। प्राचीन काल में धारणा थी कि पृथ्वी चपटी है।…

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क्या भीड़ किसी विचार, सिद्धान्त या व्यक्ति के साथ होती है ?

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बहुत से लोगों की, विशेषकर सड़क-छाप दबंगों और नेताओं की आदत होती है भीड़ से घिरे रहने की। भीड़ को वे लोग अपना शुभचिंतक, हितैषी और स्वयं को उनका मसीहा बताते हैं। लेकिन क्या भीड़ वास्तव में किसी विचार, सिद्धान्त या व्यक्ति के साथ होती है ? नहीं भीड़ केवल स्वार्थ और लोभ के साथ…

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समझदार होने का कोई सम्बन्ध नहीं डिग्रीधारी या शास्त्री होने से

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“बहुत पढ़ा हमने फलाने को ढिकाने को।” “बचपन से उनके सानिन्ध्य में रहे हम कई बरसों तक।” सारे शास्त्र, धार्मिक ग्रंथ कंठस्थ हैं हमें, एक-एक आयतें और श्लोक ज़बानी याद है। अरे ऑक्सफोर्ड, कैम्ब्रिज, केलिफोर्निया यूनिवर्सिटी का टॉपर हैं हम ! भला हमसे बड़ा ज्ञानी और कौन होगा इस दुनिया में ? ऐसे बहुत से…

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मानव जीवन का उद्देश्य
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क्या मानव जीवन का उद्देश्य “मैं सुखी तो जग सुखी के सिद्धान्त पर जीना मात्र है ?

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गौतम बुद्ध हों, महावीर हों, या ओशो या #Modern #Motivational, #Financial, #Educational Guru, सभी की शिक्षाओं का मूल सार यही होता है कि मानव जीवन का उद्देश्य “मैं सुखी तो जग सुखी” के सिद्धान्त पर जीते हुए मोक्ष प्राप्त करना। जितने भी आध्यात्मिक, धार्मिक गुरुओं को मैंने पढ़ा या सुना, सभी के प्रवचनों का सार…

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