समाज

press a cage for slaves
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डिजिटल युग में मनुष्यता की खोज: निजता की परतों में छुपा अंधकार

यह उन दिनों की बात है, जब “प्रेस कार्ड” होना किसी गौरवचिह्न से कम नहीं था। यह सिर्फ एक पहचान पत्र नहीं, बल्कि एक भरोसे की मुहर हुआ करता था—एक ऐसा प्रमाण, जो समाज में आपको एक ज़िम्मेदार, सत्यनिष्ठ और विश्‍वसनीय व्यक्ति के रूप में प्रतिष्ठित कर देता था। यह सम्मान उस समय के आधारकार्ड,…

mafia shasan prashasan
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भ्रष्टाचार और पराधीन जनमानस की अंधभक्ति: एक गहन विश्लेषण

हम जिस समाज में जी रहे हैं, वहाँ लोगों को यह तक पता नहीं कि वे धार्मिक हैं या अधार्मिक, देशभक्त हैं या पार्टीभक्त। यह अज्ञानता मात्र संयोग नहीं, बल्कि एक सुव्यवस्थित षड्यंत्र का परिणाम है। हमारे सामने जो परोसा जाता है, हम उसे ही सत्य मान लेते हैं, बिना किसी तर्क या विश्लेषण के।…

prasiddha logon kii duniya se doori
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उपयोगी प्राणी बनाम सहयोगी प्राणी: एक आत्मचिंतन

हम अक्सर समाज में प्रसिद्ध और समृद्ध लोगों की ओर आकर्षित होते हैं। हमें लगता है कि इन व्यक्तियों की संगति से हमारा जीवन भी समृद्ध और प्रसिद्ध हो सकता है। लेकिन क्या वास्तव में ऐसा होता है? क्या प्रसिद्ध व्यक्तियों की मित्रता या अमीरों का साथ हमारे जीवन को बेहतर बना सकता है? यह…

sannyas swabhiman aur sahyog
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संन्यास, स्वाभिमान और सहयोग: एक गहन दृष्टिकोण

कई लोग कहते हैं, “जब तुमने संन्यास ले लिया, समाज का त्याग कर दिया, तो फिर झोंपड़ी की आवश्यकता क्यों? आर्थिक सहयोग क्यों चाहिए? यदि जंगल में ही रहना है, तो जंगलियों की तरह रहो। क्यों मांगते हो सहायता उस समाज से जो स्वयं माफियाओं का गुलाम है?” इसी मानसिकता ने हमारे समाज को भीतर…

chunmun pardesi aur nihswarth sevaa ka drishtikon
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चुनमुन परदेसी और निःस्वार्थ सेवा का दृष्टिकोण

कई हज़ार वर्ष पुरानी बात है। चुनमुन परदेसी एक ऐसे देश में पहुंचा, जहां के लोग बहुत मेहनती थे और अपनी मेहनत के दम पर जिंदा रहते थे। उस देश में ना तो कोई किसी से सहायता मांगता था, और ना ही कोई किसी की सहायता करता था। शुद्ध कर्मवादी वैश्यों और शूद्रों का देश…

samaj ka pratibimb aur chetana ka satya
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आईआईटी बाबा: समाज का प्रतिबिंब और चेतना का सत्य

आज लोग #IITBaba उर्फ़ अभयसिंह का उपहास कर रहे हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि उन्हीं के पीछे दौड़कर समाचार एंकर, रिपोर्टर और यूट्यूबर अपनी टीआरपी और व्यूअरशिप बढ़ा रहे हैं। यह एक अजीब विडंबना है कि जिस व्यक्ति को उपेक्षित और हास्यास्पद बताया जा रहा है, वही वर्तमान मीडिया की सुर्खियों में छाया हुआ…

guru, bhakti aur samaj kii vidambana
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गुरु, भक्ति और समाज की विडंबना

इस संसार में किसी के जन्म-मरण से तब तक कोई फर्क नहीं पड़ता, जब तक कि उसके नाम पर व्यापार खड़ा न किया जा सके, कमाई का साधन न बनाया जा सके। यही कारण है कि वे गुरु, जिनके नाम पर अरबों-खरबों की संपत्ति खड़ी होती है, जिनके आश्रमों में राजनीति चमकती है, जिनकी शिक्षाओं…

क्या खोया और क्या पाया
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वर्षांत चिंतन: बीते वर्ष में क्या खोया और क्या पाया

आज वर्ष 2024 का अंतिम दिन है। हम अगले वर्ष 2025 में फिर इसी मंच पर मिलेंगे। लेकिन आज का दिन विशेष है। यह दिन हमें ठहरकर चिंतन-मनन करने का अवसर देता है—क्या खोया, क्या पाया और किस दिशा में हमारा जीवन बढ़ रहा है। पिछले वर्ष, यानी 2023 के नवम्बर में, मैंने आश्रम जीवन…

एकांतप्रिय होने कोई बीमारी नहीं है
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आज समाज के नाम पर केवल राजनैतिक, साम्प्रदायिक और जातिवादी भीड़ दिखाई देती है

जो व्यक्ति समाज और भीड़ से अलग एकांत में रहना पसंद करते हैं और सीमित लोगों से ही मिलते-जुलते या बातचीत करते हैं, उन्हें मनोविज्ञान में “इंट्रोवर्ट” (Introvert) कहा जाता है। इंट्रोवर्ट के लक्षण: 1. एकांत प्रियता: ऐसे लोग अकेले समय बिताना पसंद करते हैं और इसमें उन्हें ऊर्जा मिलती है। उनके लिए एकांत एक…

कभी किसी को वचन मत देना
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भूलकर भी किसी को वचन मत देना

मुल्ला नसरुद्दीन मरता था तो उसने अपने बेटे को कहा कि अब मैं तुझे दो बातें समझा देता हूं। मरने के पहले ही तुझे कह जाता हूं इन्हें ध्यान में रखना। दो बातें हैं। एक आनेस्टी (ईमानदारी) और दूसरी है—विजडम (बुद्धिमानी)। तो, दुकान तू सम्हालेगा, काम तू सम्हालेगा। दुकान पर तखती लगी है आनेस्टी इज…

सोशल मीडिया की विविध दुनियाएँ
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मेरी दुनिया: एक अलग दृष्टिकोण

सोशल मीडिया की विविध दुनियाएँ सोशल मीडिया आज की दुनिया का एक ऐसा मंच बन चुका है जहाँ हर व्यक्ति अपनी-अपनी रुचियों और सोच के अनुरूप एक अलग दुनिया बसा चुका है। साम्प्रदायिक लोगों की अपनी दुनिया है, जहाँ केवल हिन्दू-मुस्लिम विवादों पर चर्चा होती है। उनके मित्र, परिवार और समाज सब इसी खेल में…

जीवन का उद्देश्य
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क्या जीवन का उद्देश्य परम्पराओं का निर्वहन है ?

जीवन का उद्देश्य क्या है ? यह प्रश्न लगभग हर व्यक्ति के मन में उठता है। लेकिन इस प्रश्न का उत्तर तलाशने की दिशा में बहुत कम लोग प्रयास करते हैं। अधिकांश लोग अपने जीवन को एक प्रीप्रोग्राम्ड स्वचालित मशीन की तरह जीते हैं। उनके लिए जीवन बस एक ढर्रे पर चलता हुआ क्रम है,…