क्या सरकारें कार्पोरेट्स और माफियाओं को देश और आम नागरिकों से अधिक महत्व देती हैं ?
हम ऐसे युग में जी रहे हैं जहाँ लोकतंत्र केवल एक “लोकप्रिय नारा” बनकर रह गया है, और “जनता के हित” अब केवल सरकारी विज्ञापनों और घोषणाओं में दिखाई देते हैं। ज़मीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है — ऐसी हकीकत जिसे न समाचार चैनल दिखाते हैं, न अख़बारों में स्थान मिलता है। ग्रोक…