स्वाधीनता

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उपभोक्तावाद के गुलाम: इंसान का घटता महत्व और जागरूकता की राह

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आज का समाज उपभोक्तावाद पर आधारित कर्मवाद से ग्रस्त है, जहां इंसानों का महत्व उन्हीं पुराने रेडियो और टीवी सेट्स जैसा हो गया है, जो कभी घरों की शान हुआ करते थे और आज कचरे के ढेर में पड़े हैं। इन उपकरणों की तरह ही, इंसानों को भी तब तक महत्व दिया जाता है, जब…

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परतंत्रता में निश्चय ही सुविधा है और सुरक्षा भी

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क्या आप स्वतंत्र हैं?यह प्रश्न जितना साधारण लगता है, उतना ही गहरा और चुनौतीपूर्ण है। इस संसार में ऐसे अनगिनत लोग हैं, जो स्वयं को स्वतंत्र मानते हैं, जबकि उनका जीवन परतंत्रता की बेड़ियों में जकड़े हुए हैं। यह परतंत्रता केवल बाहरी नहीं है; यह भीतर तक फैली हुई है। स्वतंत्रता का अर्थ केवल बाहरी…

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