तीर्थ

ईश्वर दो प्रकार के होते हैं
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ईश्वर दो प्रकार के होते हैं: सरकारी और गैर-सरकारी

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सरकारी ईश्वर वह है जो मंदिरों, मस्जिदों, गिरिजाघरों, गुरुद्वारों, दरगाहों, तीर्थों में विराजमान हैं और माफियाओं, सरकारों और धर्मों के ठेकेदारों की कृपा और दया पर आश्रित है। अपनी समस्याएँ, पीड़ा व्यक्त करने के लिए, मन्नतें मांगने के लिए उनके दरबार/दफ़तर/ऑफिस में हाज़िरी लगानी पड़ती है, रिश्वत/कमीशन चढ़ानी पड़ता है। सरकारी ईश्वर सरकारी आदेशानुसार कार्य…

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मंदिरों तीरथों में ईश्वर नहीं
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मंदिरों-तीर्थों में अब ईश्वर नहीं, वैश्य, शूद्र और ठग विराजमान रहते हैं

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मान्यता थी प्राचीन काल में कि ईश्वर सर्वशक्तिमान होता है। जो भी ईश्वर के मंदिर या तीर्थों में आता है, उसकी मनोकामनाएँ पूरी कर देता है। अंधन को आँख देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ।। अर्थात जो अंधों को आँखें देता है, कोढ़ियों को स्वस्थ करता है, बांझ…

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तीर्थों में प्रवेश शुल्क wpp1659681443650
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क्या तीर्थों, मंदिरों और आश्रमों में शुल्क लेना अनुचित है ?

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मेरा व्यक्तिगत मत है कि बिलकुल भी नहीं। क्योंकि कमर्शियल (व्यवसायिक) केन्द्रों के रखरखाव के लिए शुल्क लेना ही चाहिए। और अब चूंकि फ्री के सेवक मिलते नहीं, तो भक्ति और अध्यात्म का ढोंग करने वाले तीर्थयात्रियों द्वारा फैलाये गए कूड़ा कर्कट साफ करेगा कौन ? वैसे भी तीर्थ यात्रियों का ना धर्म से कोई…

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