ठाकुर दयानन्द देव

लीलामन्दिर आश्रम
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भौतिकतावादी समाज आजीवन नहीं समझ पाएगा आश्रम का उद्देश्य और महत्व

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बुद्ध ने जिस दिन घर छोड़ा, अपने सारथि से कहा था–क्योंकि सारथि दुःखी था। बूढ़ा आदमी था। बुद्ध को बचपन से बढ़ते देखा था। पिता की उम्र का था। वह रोने लगा, उसने कहा, मत छोड़ो। कहां जाते हो? जंगल में अकेले हो जाओगे। कौन संगी, कौन साथी? तो बुद्ध ने कहा, महल में भी…

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सनातन धर्म की कोई पुस्तक नहीं है !
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मानव निर्मित विधि-विधानों की पुस्तकें हैं, लेकिन सनातन धर्म की कोई पुस्तक नहीं है !

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गौतम बुद्ध आए और “बुद्धम शरणम गच्छामी” का मन्त्र दे गए जपने के लिए। नानक आए और “एक ओंकार सतनाम” मन्त्र दे गए जपने के लिए। ठाकुर दयानन्द देव आए और “जय-जय दयानन्द, प्राण गौर नित्यानन्द” मन्त्र दे गए जपने के लिए। श्री आनन्दमूर्ति जी आए और “बाबा नाम केवलम” मन्त्र दे गए जपने के…

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guru jab bhi chunen
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वास्तविकता से दूर ले जाने वाले गुरुओं से सावधान रहें!

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गुरु कई प्रकार के होते हैं। एक गुरु वे होते हैं, जो बच्चे को चलना, उठना, बैठना, खाना, पीना, बोलना सिखाते हैं। दूसरे गुरु वे होते हैं जो लिखना पढ़ना, सर्टिफिकेट और डिग्रियां बटोरना सिखाते हैं। तीसरे गुरु वे होते हैं जो नौकरी करना, बिजनेस करना, पैसे कमाना, हेराफेरी करना, बेईमानी करना, ठगना, झूठ बोलना…

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उनकी रुचि अर्थ में है
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उनकी रूचि अर्थ (धन) में हैं धर्म और आध्यात्म में नहीं

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ठाकुर दयानन्द देव (१८८१-१९३७) ने कहा था, “मैं भौतिक जगत और अध्यात्मिक जगत के बीच सेतु बनाना चाहता हूँ”। उनका कहना था, “True welfare lies in harmony between the spiritual and the material. Spirituality without material well bring tends to decay and emasculation. Materialism, if it is not allied with the spiritual realization, if it…

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