वैश्य

ब्राह्मण और साधु संत
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ब्राह्मण और क्षत्रिय लुप्त नहीं हुए हैं अभी तक

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वैश्य अर्थात वे लोग जो व्यापार करते हैं। वैश्यों की कोई विशेष भेषभूषा नहीं होती। वे साधु-संतों के भेष में भी होते हैं और समाजसेवकों, राजनेताओं, पुलिस के भेष में भी। भले वैश्यों का अपना समाज हो, लेकिन वैश्य समाज से बाहर भी वैश्य पाये जाते हैं, क्योंकि व्यापार किसी समाज की बपौती नहीं है।…

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ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र
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डिग्रियाँ आपको चपरासी से मैनेजर बना सकती हैं किन्तु शिक्षित नहीं

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कहते हैं शिक्षा यदि वरदान है, तो अभिशाप भी। यदि योग्य और विवेकवान व्यक्ति को शिक्षा मिलती है, तो उसके लिए ही नहीं, समस्त विश्व के लिए वरदान हो जाएगा। लेकिन यदि शिक्षा अयोग्य और कुंद-बुद्धि व्यक्ति को मिलती है, तो समस्त विश्व के लिए अभिशाप बन जाएगा। एक बुद्धिहीन व्यक्ति के प्रश्न भी ऐसे…

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dadaba badal lene se pravriti nahi badal jaati
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दड़बा बदल लेने से प्रवृति नहीं बदल जाती

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माफियाओं की गुलाम सरकारों की चाकरी करो, आरक्षण प्राप्त करो, मल्टीनेशनल कम्पनी में नौकरी करो, राजनैतिक पार्टियों की भक्ति करो, देश व जनता के लुटेरों और माफियाओं के चरणों में नतमस्तक रहो का सिद्धान्त सही है या अपना दीपक आप बनो का सिद्धान्त सही है ? क्या शूद्रों (वेतन-भोगियों) का जीवन जीने वाला व्यक्ति अपना…

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माफियाओं और लुटेरों के सामने क्यों नतमस्तक हो जाते हैं आस्तिक और धार्मिक ?

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क्या कभी सोचा है कि दुनियाभर के आध्यात्मिक, धार्मिक, राजनैतिक, सामाजिक गुरु और संगठन, संस्थाएं मिलकर भी देश व जनता को लूटने और लुटवाने वालों का सामना क्यों नहीं कर पाते ?

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