विशुद्ध चैतन्य

press a cage for slaves
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डिजिटल युग में मनुष्यता की खोज: निजता की परतों में छुपा अंधकार

यह उन दिनों की बात है, जब “प्रेस कार्ड” होना किसी गौरवचिह्न से कम नहीं था। यह सिर्फ एक पहचान पत्र नहीं, बल्कि एक भरोसे की मुहर हुआ करता था—एक ऐसा प्रमाण, जो समाज में आपको एक ज़िम्मेदार, सत्यनिष्ठ और विश्‍वसनीय व्यक्ति के रूप में प्रतिष्ठित कर देता था। यह सम्मान उस समय के आधारकार्ड,…

आश्रम अब आध्यात्मिक केंद्र नहीं रहे
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आश्रम अब आध्यात्मिक केंद्र नहीं रहे

आधुनिक समय में आश्रमों का स्वरूप और उद्देश्य दोनों बदल चुके हैं। अब ये आध्यात्मिक साधना और आत्मान्वेषण के केंद्र न रहकर छुट्टियाँ बिताने, पिकनिक और पार्टी करने के स्थान बन चुके हैं। यहाँ आकर न केवल लोग मौज-मस्ती करते हैं, बल्कि खुद को धार्मिक, सात्विक और आध्यात्मिक होने का अहंकार भी बनाए रखते हैं।…

अपनी मौलिकता को पहचानें
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स्वयं को स्वीकारें: अपनी मौलिकता का सम्मान करें

बचपन से हमें यह सिखाया जाता है कि हमें दूसरों जैसा बनना चाहिए। माता-पिता, परिवार और समाज अक्सर हमें वैसे स्वीकार नहीं कर पाते जैसे हम वास्तव में होते हैं। परिणामस्वरूप, हम अपनी मौलिकता को दबा देते हैं और दूसरों की नकल करने की होड़ में लग जाते हैं। हमारी शिक्षा, परिवेश और सामाजिक अपेक्षाओं…

luxury baba
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लक्ज़री बाबा उर्फ चुनमुन परदेसी

यह बात कई हज़ार साल पुरानी है। एक राज दरबार में चुनमुन नाम का एक कर्मठ दरबारी हुआ करता था। एक दिन उसके मन में वैराग्य का भूत सवार हुआ। उसने सरकारी नौकरी, यानी “राजा की चाकरी,” छोड़ दी और संन्यासी बन गया। मन में यह भाव था कि अब हर तरफ़ जय-जयकार होगी, त्यागी-बैरागी…

haal chaal theek thaak hai
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सामाजिक शिष्टाचार और वास्तविकता का अंतर

कैसे हैं आप? जब भी किसी व्यक्ति से मिलते हैं, पहला प्रश्न यही होता है, “कैसे हैं आप? क्या हाल हैं आपके ?” और उत्तर सामान्यतः यही मिलता है, “मैं बिलकुल ठीक हूं। ईश्वर की कृपा है।” लेकिन क्या यह संवाद हमारी वास्तविकता को दर्शाता है? प्रश्न करने और उत्तर देने वाले दोनों जानते हैं…

jivan maran ke chakra se mukti
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किसे पुनर्जन्म मिलेगा और किसे मोक्ष मिलेगा ?

आजकल बहुत से लोग मोक्ष प्राप्त करने के लिए दुनिया भर के कर्मकाण्डों में व्यस्त रहते हैं। किसी ने गंगा स्नान करने का वचन लिया है, तो कोई सवा पाँच रुपए का प्रसाद चढ़ाने का मन बना रहा है, सोचते हैं कि इससे जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाएगी और मोक्ष की प्राप्ति होगी।…

against truth
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सोशल मीडिया कम्यूनिटी स्टैंडर्ड क्या सत्य के विरुद्ध नहीं है ?

हाल ही में, सरिता प्रकाश जी का फेसबुक प्रोफ़ाइल और पेज फेसबुक द्वारा सस्पेंड कर दिया गया। फेसबुक का संदेश मिला कि सोशल मीडिया कम्यूनिटी स्टैंडर्ड का उल्लंघन हुआ है, इसलिए सस्पेंड किया गया। प्रोफ़ाइल को पुनः सक्रिय (रीएक्टिव) करने के लिए या तो पासपोर्ट की कॉपी आईडी प्रूफ के तौर पर जमा करनी होगी,…

jid hai shor machaane kii
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दीपावली: दीयों का त्यौहार या शोर-शराबे का ?

उत्सवों का उद्देश्य होता है हर्षोल्लास के साथ पारिवारिक और सामाजिक सम्बन्धों को सशक्त बनाना, प्रेम और आनन्द बाँटना और साथ दरिद्रों को भोजन और वस्त्र दान करना। दान करने का मुख्य उद्देश्य होता है अपनी समृद्धि का अहंकार न हो जाये, इसलिए कुछ अंश दूसरों को बाँटकर उन्हें भी अपनी प्रसन्नता में सम्मिलित करना।…

thopi hui manyataon se mukt sannyasi
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संन्यास: सामाजिक मान्यताओं और परम्पराओं का बंधन है या स्वतंत्रता ?

क्या आपने कभी सोचा है कि जीवन में हम कितनी चीजों के लिए दूसरों पर निर्भर रहते हैं? कितनी बार हमारे अपने ही शुभचिंतक और हितैषी हमारे निर्णयों के कारण दूर हो जाते हैं? पिछले साल 3 नवंबर को मैंने भी ऐसा एक कदम उठाया – आश्रम छोड़कर गाँव के एक साधारण घर में रहने…

maan samman
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पद-प्रतिष्ठा और स्थान पर आधारित मान-सम्मान और अपनापन आपका नहीं है

यदि पद, प्रतिष्ठा और स्थान पर आधारित हो सम्मान और अपनापन, तो फिर वह आपका नहीं है। उन्हें अपना समझने की मूर्खता कभी न करें। हमारा अपना कुछ नहीं है इस जगत में। जो कुछ भी हमें इस जगत में मिलता है, वह सब शर्तों पर मिलता है, लीज़ पर मिलता है। कोई हमें मान-सम्मान…

dharmsankat mein chunmun pardesi
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धर्मसंकट में चुनमुन परदेसी

चुनमुन परदेसी अपने सेनापतियों के साथ मंत्रणा कक्ष में बैठे गहन मंत्रणा कर रहे थे। सुबह सुबह ही कौरवों के राजदूत ने महाभारत युद्ध में उनकी ओर से युद्ध में सम्मालित होने का निमंत्रण दिया था। शाम को पांडवों के राजदूत के आने की सूचना मिली थी। तो मंत्रणा यह चल रही थी कि कौरवों…

व्यापार में सब जायज है

मैंने साधु-समाज को बहुत निकट से देखा है

लोग मेरा भगवा देखकर सीधे रामायण, गीता, वेदों की बातें करने लगते हैं। भले इन ग्रन्थों को कभी पढ़ा न हो, केवल कुछ किस्से कहानियाँ पढ़ या सुन ली कहीं से और चले आते हैं वाद-विवाद करने। और जब मैं कहता हूँ कि इन सब विषयों में मेरी कोई रुचि नहीं, तो उन्हें बड़ा आश्चर्य…