विशुद्ध विचार

वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था
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वर्ण-व्यवस्था और जाति व्यवस्था में क्या अंतर है ?

वर्ण-व्यवस्था का और कैसे जाति-व्यवस्था में रूपांतरित हो गयी और कब जाति-व्यवस्था जाति-वाद में रूपांतरित हो गयी यह बता पाना कठिन है। लेकिन वर्ण-व्यवस्था की आलोचना करने वाले विद्वान ब्राह्मणों को दोषी ठहराते हैं जाति-वाद फैलाने का। उनका मानना है कि वर्ण व्यवस्था नहीं होती, तो जातिवाद भी नहीं होता। और यही लोग राजनैतिक/सरकारी जाति…

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समाज से दूरी एक अनिवार्यता
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जागृत लोगों के लिए समाज से दूरी: एक अनिवार्यता

जब साधु-संन्यासियों के निवास स्थान की चर्चा होती है, तो आम धारणा यह है कि उनका कोई स्थायी निवास स्थान नहीं होता। उनके लिए संपूर्ण पृथ्वी ही निवास स्थान है। वे भ्रमणशील होते हैं, और यह अपेक्षा की जाती है कि वे भटकते रहें, ईश्वर की खोज में। कौन जाने, किस गली या चौबारे में…

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मनोविज्ञान में डिटैचमेंट का सिद्धांत (law of detachment)
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मनोविज्ञान में डिटैचमेंट का सिद्धांत (Law of Detachment)

मनोविज्ञान में डिटैचमेंट का सिद्धांत (Law of Detachment) यह सिखाता है कि हमें परिणामों, परिस्थितियों या दूसरों के व्यवहार को नियंत्रित करने की आवश्यकता से मुक्त होकर जीना चाहिए। यह सिद्धांत मानसिक शांति, संतुलन और भावनात्मक स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है। इसका मुख्य उद्देश्य यह समझाना है कि जब हम अपनी उम्मीदों और इच्छाओं को…

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स्वाभिमान और अनुभव की कहानी
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जीवन के उतार-चढ़ाव: स्वाभिमान और अनुभव की कहानी

मनुष्य का जीवन हमेशा एक जैसा नहीं होता। मेरे जीवन ने भी इस सत्य को बार-बार सिद्ध किया है। कभी आसमान की ऊँचाइयों को छुआ है, तो कभी फुटपाथ पर अपनी रातें बिताई हैं। यह कहानी उन अनगिनत पलों की है, जो मेरे अनुभवों की थाती हैं। कभी मैं देश की जानी-मानी हस्तियों, म्यूजिक कंपनियों…

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हिन्दुत्व और संस्कृति के तथाकथित रक्षक
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हिन्दुत्व और संस्कृति के तथाकथित रक्षक

आजकल जब भी हम हिंदुत्व और हिंदू संस्कृति की रक्षा का ढोंग करने वाले तथाकथित रक्षकों को देखते हैं, तो उनका स्वरूप हमेशा विरोधाभासों से भरा नजर आता है। इनकी उपस्थिति में पाखंड और विडंबना स्पष्ट रूप से झलकती है। पश्चिमी संस्कृति का विरोध, लेकिन पश्चिमी वस्त्र और उपकरण? पश्चिमी त्योहारों का विरोध करते हुए…

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क्या वास्तव में कुछ बदला
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नये वर्ष का सन्देश: क्या वास्तव में कुछ बदला ?

आज प्रातःकाल जब नया वर्ष आरम्भ हुआ, तो नयी आशाओं और संभावनाओं की बात हर ओर सुनाई दी।लेकिन गहरे विचार करें तो प्रश्न उठता है: क्या वास्तव में कुछ बदला? कल हम पुराने वर्ष की चौखट पर खड़े होकर नये वर्ष की प्रतीक्षा कर रहे थे। और आज, जैसे पुरानी गाड़ी छोड़कर नयी गाड़ी में…

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क्या खोया और क्या पाया
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वर्षांत चिंतन: बीते वर्ष में क्या खोया और क्या पाया

आज वर्ष 2024 का अंतिम दिन है। हम अगले वर्ष 2025 में फिर इसी मंच पर मिलेंगे। लेकिन आज का दिन विशेष है। यह दिन हमें ठहरकर चिंतन-मनन करने का अवसर देता है—क्या खोया, क्या पाया और किस दिशा में हमारा जीवन बढ़ रहा है। पिछले वर्ष, यानी 2023 के नवम्बर में, मैंने आश्रम जीवन…

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कमाकर खाओ
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बुरे समय में कोई साथ नहीं देता, इसलिए धन अर्जन आवश्यक है

यह जीवन का कटु सत्य है कि बुरे समय में लोग आपका साथ छोड़ देते हैं। ऐसा प्रायः सभी के साथ होता है। बहुत कम लोग इस दुनिया में ऐसे मिलते हैं, जिन्हें कठिन समय में किसी का सहारा मिला हो और वे बिखरने से बच गए हों। यहां तक कि जिनके पास करोड़ों की…

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एकांतप्रिय होने कोई बीमारी नहीं है
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आज समाज के नाम पर केवल राजनैतिक, साम्प्रदायिक और जातिवादी भीड़ दिखाई देती है

जो व्यक्ति समाज और भीड़ से अलग एकांत में रहना पसंद करते हैं और सीमित लोगों से ही मिलते-जुलते या बातचीत करते हैं, उन्हें मनोविज्ञान में “इंट्रोवर्ट” (Introvert) कहा जाता है। इंट्रोवर्ट के लक्षण: 1. एकांत प्रियता: ऐसे लोग अकेले समय बिताना पसंद करते हैं और इसमें उन्हें ऊर्जा मिलती है। उनके लिए एकांत एक…

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आश्रम अब आध्यात्मिक केंद्र नहीं रहे
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आश्रम अब आध्यात्मिक केंद्र नहीं रहे

आधुनिक समय में आश्रमों का स्वरूप और उद्देश्य दोनों बदल चुके हैं। अब ये आध्यात्मिक साधना और आत्मान्वेषण के केंद्र न रहकर छुट्टियाँ बिताने, पिकनिक और पार्टी करने के स्थान बन चुके हैं। यहाँ आकर न केवल लोग मौज-मस्ती करते हैं, बल्कि खुद को धार्मिक, सात्विक और आध्यात्मिक होने का अहंकार भी बनाए रखते हैं।…

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सोशल मीडिया की विविध दुनियाएँ
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मेरी दुनिया: एक अलग दृष्टिकोण

सोशल मीडिया की विविध दुनियाएँ सोशल मीडिया आज की दुनिया का एक ऐसा मंच बन चुका है जहाँ हर व्यक्ति अपनी-अपनी रुचियों और सोच के अनुरूप एक अलग दुनिया बसा चुका है। साम्प्रदायिक लोगों की अपनी दुनिया है, जहाँ केवल हिन्दू-मुस्लिम विवादों पर चर्चा होती है। उनके मित्र, परिवार और समाज सब इसी खेल में…

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जीवन का उद्देश्य
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क्या जीवन का उद्देश्य परम्पराओं का निर्वहन है ?

जीवन का उद्देश्य क्या है ? यह प्रश्न लगभग हर व्यक्ति के मन में उठता है। लेकिन इस प्रश्न का उत्तर तलाशने की दिशा में बहुत कम लोग प्रयास करते हैं। अधिकांश लोग अपने जीवन को एक प्रीप्रोग्राम्ड स्वचालित मशीन की तरह जीते हैं। उनके लिए जीवन बस एक ढर्रे पर चलता हुआ क्रम है,…

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