विशुद्धचिंतन (Vishuddha-Chintan) is a blogsite based on Darshan and Philosophy to make you to Think, Observe and Understand the Reality of the Society, Government, Politics, Religion and so on….
अपने ही देश की संस्कृति और समाज को ठुकरा कर हम विदेशी संस्कृति को महत्व देने लगे
हम जन्म से न तो हिन्दू हैं और न ही डॉक्टर या इंजीनियर, हम जन्म से मानव हैं और उसके बाद भारतीय। क्योंकि जन्म के समय जो शरीर हमें मिला वह मानव का है और जिस भुमि में हमने जन्म लिया वह भारत है। सबसे पहले हमने माँ को जाना और फिर पिता को जाना जब तक हम गोद में थे। फिर जाना पहली बार उस भूमि को जिसपर हमने चलना और खड़े होने सिखा, लेकिन तब तक हमारा परिचय नहीं हुआ था धर्म, वर्ण, जाति व सम्प्रदाय से। Continue Reading
नवीनतम लेख
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दीपावली: दीयों का त्यौहार या शोर-शराबे का ?
उत्सवों का उद्देश्य होता है हर्षोल्लास के साथ पारिवारिक और सामाजिक सम्बन्धों को सशक्त बनाना, प्रेम और आनन्द बाँटना और साथ दरिद्रों को भोजन और वस्त्र दान करना। दान करने का मुख्य उद्देश्य होता है अपनी समृद्धि का अहंकार न हो जाये, इसलिए कुछ अंश दूसरों को बाँटकर उन्हें भी अपनी प्रसन्नता में सम्मिलित करना।…
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आजादी की गुलामी: शिक्षा और मानसिकता का संकट
आजादी के बाद, हमने शिक्षा के नाम पर डिग्री हासिल की, लेकिन इस प्रक्रिया में हम शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक और आर्थिक रूप से गुलाम हो गए हैं। हम ऐसे नवाब बन गए हैं कि हमें यह भी नहीं पता चला कि कब हमारी ज़मीन खिसक गई। आज हमारे देश में कई लोग, चाहे वे सोने…
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परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है – ठहराव का नहीं
प्रकृति सदैव नवीनता को अपनाती है, जबकि अक्सर धार्मिक लोग पुरातन चीजों में आस्था रखते हैं। प्रकृति का नियम है कि यदि कुछ नया, बेहतर, या उन्नत संभव है तो वह पुराने को मिटाकर नया रचती है। चाहे वह डायनासौर जैसे विशालकाय जीवों का विलुप्त होना हो या मंगल ग्रह को निर्जीव करके पृथ्वी को…
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भारत का कृषि प्रधान देश होने का भ्रम
प्रारंभिक भ्रम हममें से अधिकांश ने बचपन में पढ़ा था कि भारत एक कृषि प्रधान देश है। लेकिन जैसे ही गाँव से निकलकर शहरों में कदम रखा, असलियत सामने आई। भारत एक ऐसा देश बन चुका है जहाँ आम नागरिकों का जीवन माफिया और दलालों के हाथों में है। यहाँ जन्म लेने वाला हर व्यक्ति…
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पिछले साल 3 नवंबर को मैंने आश्रम छोड़कर गाँव के एक साधारण घर में रहने का निर्णय लिया
क्या आपने कभी सोचा है कि जीवन में हम कितनी चीजों के लिए दूसरों पर निर्भर रहते हैं? कितनी बार हमारे अपने ही शुभचिंतक और हितैषी हमारे निर्णयों के कारण दूर हो जाते हैं? पिछले साल 3 नवंबर को मैंने भी ऐसा एक कदम उठाया – आश्रम छोड़कर गाँव के एक साधारण घर में रहने…
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अपने जीवन को ऊर्जावान बनाएं: शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक और आर्थिक विकास
अपने जीवन को ऊर्जावान बनाने के लिए शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक और आर्थिक विकास अत्यंत आवश्यक हैं। इसके लिए प्राकृतिक साग-सब्जियां, फल, और अनाज उगाने या खरीदने में कंजूसी न करें। यह शुद्ध आहार आपके समग्र विकास के लिए आवश्यक है और यह उस परमात्मा का प्रसाद है जो आपके मन में बसा है। सच्ची मेहनत…